गुजराती लिपी : गुजरात राज्यात गुजराती भाषा लिहिण्यासाठी या लिपीचा उपयोग करतात. ही लिपी नागरी लिपीपासून उत्पन्न झाली. गुर्जरवंशीय राजा तिसरा जयभट याच्या सातव्या शतकातील ताम्रपटातील लेखनपद्धती जरी दाक्षिणात्य असली, तरी लेखातील शेवटची अक्षरे (‘स्वहस्तो मम श्रीजयभटस्य’) नागरी लिपीतील आहेत. चालुक्य राजांच्या ताम्रपटांतून नागरी लिपी दिसून येते. हे ताम्रपट अकराव्या शतकातील उत्तरेकडील नागरी लिपिपद्धतीमध्ये लिहिलेले आहेत. चालुक्य राजा दुसरा भीम याच्या ११९९ आणि १२०७ मधील दोन ताम्रपटांतील लिपी नागरी आहे. गुजरातमध्ये अकराव्या शतकात लिहिलेल्या ताडपत्रांवरील हस्तलिखित पोथ्या सापडल्या आहेत. त्या हस्तलिखितांची लिपीही नागरी आहे. या नागरी लिपीपासूनच प्रचलित गुजराती लिपी उत्पन्न झाली. पंधराव्या शतकापासून गुजराती किंवा बोडिया लिपीमध्ये लिहिलेली हस्तलिखिते सापडली आहेत. ही लिपी नागरीपासून उत्पन्न झाली तथापि ‘अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क, च, ज, झ, ण, फ, ब’ आणि ‘भ’ ही अक्षरे नागरी लिपीपेक्षा वेगळी आहेत. या लिपीमध्ये ‘ए’ या स्वराला वेगळे अक्षर नाही ‘अ’ या स्वराच्याच डोक्यावर मात्रा देऊन तो दर्शविला जातो. ‘क्ष’ आणि ‘ज्ञ’ ही जोडाक्षरे मानली आहेत. काना, मात्रा, वेलांटी, जोडाक्षरे इ. नागरीप्रमाणेच असली, तरी गुजराती लिपीत अक्षरांवर शिरोरेषा नाहीत.
अ |
आ |
इ |
ई |
उ |
ऊ |
ऋ |
|||
અ |
આ |
ઇ |
ઈ |
ઉ |
ઊ |
ઋ |
|||
लृ |
ए |
ऐ |
ओ |
औ |
अं |
अः |
|||
લૃ |
એ |
ઐ |
ઓ |
ઔ |
અં |
અઃ |
|||
क |
ख |
ग |
घ |
ङ |
च |
छ |
ज |
झ |
ञ |
ક |
ખ |
ગ |
ઘ |
ઙ |
ચ |
છ |
જ |
ઝ |
·ઝ |
ट |
ठ |
ड |
ढ |
ण |
त |
थ |
द |
ध |
न |
ટ |
ઠ |
ડ |
ઢ |
ણ |
ત |
થ |
દ |
ધ |
ન |
प |
फ |
ब |
भ |
म |
य |
र |
ल |
व |
|
પ |
ફ |
બ |
ભ |
મ |
ય |
ર |
લ |
વ |
|
श |
ष |
स |
ह |
ळ |
क्ष |
ज्ञ |
|||
શ |
ષ |
સ |
હ |
ળ |
ક્ષ |
જ્ઞ |
|||
गुजराती वर्णमाला |
संदर्भ : 1. Buhler, George, Indian Paleography, Calcutta, 1962.
२. ओझा, गौरीशंकर, भारतीय प्राचीन लिपिमाला, दिल्ली, १९५९.
गोखले, शोभना ल.
“