लॅटिन भाषा : उत्कृष्ट साहित्य, ज्ञानग्रंथ किंवा धार्मिक वाङ्‌मय असलेल्या भाषा दैनंदिन व्यवहारात मृत असल्या, तरी त्यांचा अभ्यास चालूच असतो. प्राचीन काळच्या सुवर्णनाण्याप्रमाणेच त्यांची किंमतही वाढतच जाते. संस्कृत, पाली, लॅटिन, अरबी इ. भाषा अशा प्रकारच्या आहेत.

लॅटिन ही एक इंडो-यूरोपियन भाषा आहे. भरपूर अभ्याससामग्री असलेल्या अतिप्राचीन भाषांपैकी ती एक. शिवाय तिचा पुरावा संस्कृतच्या पुराव्यापेक्षा फार नंतरचा नाही. त्यामुळे या दोन भाषांचे साम्यदर्शन विशेष स्पष्ट आहे. उदा., खालील शब्द पहा (पहिला लॅटिन व दुसरा संस्कृत) : (pater) पितर् (mater) मातर्  (frater) भ्रातर् (soror) स्वसर् (vidua) विधवा (pecus) पशूस् (ovis) अविस् (equus) अश्वस् (mus) मूष् (ueho) वहा (मि) (posco) पृच्छा(मि) (dues) देवस् (duo) द्वौ (tres) त्रयस् (septem) सप्त (decem) दश इत्यादी.

लेखन व ध्वनी : लॅटिनची लिपी रोमन आहे. पण तीत (j) व (w) ही अक्षरे नाहीत, तर (k) चा वापर अगदी क्वचित आढळतो. कित्येक ठिकाणी वापरलेले (j) हे अक्षर (i) साठी वापरले असून ते स्वरापूर्वीच येते :(sub judice, de jure) इत्यादी. एका अक्षराचा निश्चित एकच उच्चार होतो. उदा., c चा सर्वत्र क : (cadaver) (कादावेर्) प्रेत,  (centum) (केन्तुम्) शंभर, (cinis) (किनिस) राख, (Columba) (कोलुम्बा) पारवा इत्यादी.

अक्षरचिन्हे व उच्चार पुढीलप्रमाणे : a(आ,) b(ब), c(क), d(द), e(ए), f(फ घर्षक),  g(ग), h(ह), i(इ स्वराआधी य) l(ल), m(म), n(न), o(ओ), p(प), q(तालव्य क), r(र), s(स), t(त), u(उ, स्वराआधी व), v(व), x(क्स), y(य), z(झ दुर्मिळ).

लॅटिनची ध्वनिव्यवस्था खालील कोष्टकात दाखविल्याप्रमाणे आहे.

व्यंजने

 

अघोष 

सघोष 

महाप्राण 

स्फोटक 

अनुनासिक 

घर्षक 

कंपक 

पार्श्विक 

अर्धस्वर  

महाप्राण* 

क त प 

. . . 

. स फ 

. . . 

. . . 

. य व 

ह . . 

 

 

ग द ब 

ड न म  

.(झ). 

. र . 

. ल . 

. . . 

. . . 

 

 

ख थ फ 

. . . 

. . . 

. . . 

. . . 

. . . 

. . . 

* महाप्राण मुळात दुर्बल असून पुढील भाषिक उत्क्रांतीत बहुतेक रोमान्स भाषांतून तो पूर्णपणे नष्ट झालेला आहे. 

स्वर

 

पुढचा 

मधला 

मागचा 

 

उच्च 

मध्य  

नीच 

इ 

ए 

.

उ 

ओ 

.

हे पाचही स्वर ऱ्हस्व किंवा दीर्घ असू शकतात. दीर्घ स्वर शिरोभागी आडवी रेषा काढून  (a), तर ऱ्हव स्वर अर्धचंद्र देऊन (ã), दर्शवण्यात येतात. ऱ्हस्व-दीर्घत्वाचे नियम निश्चित असल्यामुळे अपवादात्मक बाबतीतच या चिन्हांचा उपयोग संभवतो.

शुद्ध स्वरांव्यतिरिक्त ae (आय्), au (आउ), oe (ओयू), ei (एइ), eu (एउ) व ui (उइ) हे स्वरसंयोग आहेत. स्वरसंयोगात पहिला स्वर आघातुयुक्त असून, दुसरा आघातशून्य (संवृत) असतो.

शब्दातील आघात दोन अवयवयुक्त शब्दांत पहिल्या अवयवावर (magis मागिस् ‘अधिक’, tego तेगो ‘आच्छादणे’) असतो. दोनांपेक्षा अधिक अवयव असलेल्या शब्दांत तो उपांत्य स्वर दीर्घ किंवा बद्ध असल्यास त्याच्यावर (amicus आमीकुस् ‘प्रेमळ’, (magiste) मागिस्तेर ‘धनी’), पण उपांत्य स्वर दीर्घ किंवा बद्ध नसल्यास, उपांत्यपूर्व स्वरावर (belicus) बेलिकुस् ‘लढाऊ’, (tenebrae) तेनेब्राए ‘अंधःकार’) असतो.

 

व्याकरण : लॅटिनमध्ये आठ प्रकारचे शब्द आहेत : चार विकारक्षम व चार विकारशून्य. नाम, विशेषण, सर्वनाम व क्रियापद विकारक्षम, तर क्रियाविशेषणे, संबंधशब्द, उभयान्वयी अव्यये आणि उद्गारवाचक विकारशून्य असतात.

 

विकारक्षम शब्द : नाम : लॅटिनमध्ये तीन लिंगे, दोन वचने व सहा विभक्ति आहेत. षष्ठी एकवचनाच्या रूपानुसार नामांचे पाच भाग करण्यात आलेले आहेत. ae, i. is शब्दांती येणाऱ्यांचा पहिला भाग (यात नामे आणि विशेषणे येतात), तर us, ei शब्दांती येणाऱ्या नामांचा दुसरा भाग (यात फक्त नामेच येतात).

खाली (dominus) दोमिनुस् ‘मालक’ हे पुल्लिंगी नाम दोन्ही वचनांत सर्व विभक्तींत, (bonus) बोनुस् ‘चांगला’ या विशेषणासह चालवून दाखविले आहे.

                                                             एकवचन 

प्रथमा               dominus                                bonus                               चांगला मालक

संबोधन            domine                                  bone                                 चांगल्या मालका!

द्वितीया             dominum                              boaum                              चांगला मालक

षष्ठी                  domini                                   boni                                  चांगल्या मालकाचा

चतुर्थी              domino                                  bono                                 चांगल्या मालकाला

पंचमी               domino                                  bono                                 चांगल्या मालकाने,-कडून 

                                                              अनेकवचन 

प्रथमा               domini                                    boni                                  चांगले मालक

संबोधन            domini                                    boni                                  अहो चांगले मालक!

द्वितीया            dominos                                  bonus                               चांगले मालक

षष्ठी                 dominorum                              bonorum                         चांगल्या मालकांचा

चतुर्थी              dominis                                    bonis                                चांगल्या मालकाला

पंचमी               dominis                                    bonis                               चांगल्या मालकांनी,-कडून 

विशेषण : विशेषणाचे विभक्तिप्रत्यय नामाप्रमाणेच असतात. तुलनात्मक रूप व श्रेष्ठत्वदर्शक रूप बनविण्यासाठी विशेषणाचे i अत्यंस्थानी असलेले रूप घेऊन (i) च्या जागी (ior) व (issimus) हे प्रत्यय अनुक्रमे लावण्यात येतात : (altus) आल्तुस् ‘उंच’-षष्ठी  (alti,) तुलनात्मक (altior) आल्तिओर्  ‘अधिक उंच’,  ‘श्रेष्ठत्वदर्शक’ (altissimus) अल्तिस्सिमुस ‘सर्वांत उंच’ किंवा ‘अतिशय उंच’.

या गुणवाचक शब्दांव्यतिरिक्त संख्यावाचक व क्रमवाचक विशेषणे आहेत. त्यांतली काही अशी (पहिला शब्द संख्यावाचक, दुसरा क्रमवाचक) : १ anus-primus, २ dno-alter, secundus, ३ tres-tertius, ४ quattnor-quaritus, ५ quinque-qurintus, ६ sex-sextus, ७ septem-septimus, ८ octo-octavus, ९ novem-nonus, १०, decem-decimus, २० viginti-viciesmus, centum-centesimus, १००० mille-millesimus.


सर्वनाम : सर्वनामांत पुरुषवाचक (व त्यापासून बनलेली स्वामित्वदर्शक विशेषणे), दर्शक, संबंधी, प्रश्नार्थक आणि अनिश्चित असे प्रकार आहेत.

प्रथम व द्वितीय पुरुषवाचक सर्वनामे लिंगदर्शक नाहीत, तर तृतीय पुरुषवाचक सर्वनामे ही दर्शकही आहेत. ती पुढील प्रकारे चालतात.

प्रथम व द्वितीय पुरुष. 

एकवचन 

१- 

२- 

प्रथमा 

Ego

tu

द्वितीया 

Me

te

षष्ठी 

Mei

tni

चतुर्थी 

Mihi

tibi

पंचमी 

Me

te

अनेकवचन 

१- 

२- 

Nos

vos

Nos

vos

Nostril, nostrum

Vestry, vestrum

Nobis

vobis

Nobis

vobis

तृतीय पुरुषातील hic हीक ‘हा’ या सर्वनामाची रूपे

एकवचन 

पु. 

hic

hunc      

hujus

huic 

hoc

स्त्री. 

haec 

hanc 

hac

न. 

hoe

hoe

hoc

अनेकवचन 

पु. 

hi

hos

horum   

his          

his

स्त्री. 

hae

has

harum

न. 

haec

haec

horum 

याशिवाय ille-illa-illud तो-ती-ते, iste (तो, इ.) च, is-ea-id हा-ही-हे, idem-eadem-idem स्वतः, ipse-ipsa-ipsum स्वतःच, qui-quae-quod जो-जी-जे, quis-quae-quid कोण, कोणता आणि इतर काही सर्वनामे आहेत.

 

क्रियापद : लॅटिनमध्ये क्रियापद सकर्मक किंवा अकर्मक असते. ज्या क्रियापदाला द्वितीयेची अपेक्षा असते, ते सकर्मक : amo patrem ‘मी पित्यावर (द्वि) प्रेम करतो.’ द्वितीयेखेरीज अन्य विभक्तीची अपेक्षा असलेले ते अकर्मक : mihi nocet ‘तो माझा (च) नाश करतो’.

कर्तरी व कर्मणी असे दोन प्रयोग आहेत : amo ‘मी प्रेम करतो’.- amor ‘माझ्यावर प्रेम केले जाते’. ‘यांशिवाय कर्मणी रूप, पण कर्तरी अर्थ असलेला एक मध्यम प्रयोग आहे: imitor ‘मी अनुकरण करतो’, nascor ‘मी जन्मतो’.

यांशिवाय धातुसाधिते, हेत्वर्थक व पूर्वकालदर्शक रूपे इ. आहेत.

प्रथम व द्वितीय पुरुषांत कर्ता सर्वनाम व तर्कसिद्ध असल्यामुळे व्यक्त केला जात नाही : amo ‘मी प्रेम करतो’, पण ego amo ‘मी, मी प्रेम करतो!’ तृतीय पुरुषातही तो सर्वनाम असल्यास दिला जात नाही.

Esse ‘असणे’ या महत्त्वाच्या क्रियापदाची काही रूपे आणि नंतर amare ‘प्रेम करणे’ या क्रियापदाची काही रूपे नमुन्यादाखल पुढे दिली आहेत. त्यांचा क्रम असा : वर्तमान, अपूर्णभूत, भविष्य, भूत, अतिभूत, पूर्वभविष्य, हे निश्चितार्थक व संभावनार्थात फक्त वर्तमान.

                                                                                    esse

                                                                      निश्चितार्थक

वर्तमान

अपूर्ण भूत              

भविष्य

भूत

ए.व         १ 

sum

eram

ero

fai

               २

es

eras

eris  

faisei

               ३

est

erat

 erit                   

fait

अ.व         १ 

samus

eramas

erimus

fnimus

               २

estis

eratis

eritis

fuistis

               ३

sunt

erant

erunt

fuerunt

अतिभूत 

पूर्वभविष्य 

संभावनार्थक (वर्तमान)  

Fueram 

fuero

sim

fueras

fueris

sis

fuerat

fuerit

sit

fueramus

fuerimus

simus

fueratis

fueritis

Sitis

fuerant 

fuerint 

sint

आज्ञार्थ 

ए.व. es

अ.व. este


                                                           amare प्रेम करणे-

                                                                  (धातू am‑+ प्रत्यय)

                                                                         निश्चितार्थक 

वर्तमान

अभूत

भविष्य

amo

amabam

amabo

amas 

amabas

amabis

amat

amabat

amabit

amamus 

amabamus 

amabimus

amatis

amabatis

Amabitis

amant

amabant

Amabunt

भूत

* अतिभूत                                      

* पूर्वभविष्य

amavi

amaveram

amavero

amavisti

amaveras 

amaveris

-amastis                   

 

 

amavit  

amaverat 

amaverit

amavimus

amaveramus 

 amaverimus

-amastis                   

 

 

amaverunt

amaverant

amaverint

-amarunt                 

 

 

* प्रत्ययातील ve वैकल्पिक amaram इ. रूपेही होतात.

                                                                 संभावनार्थक (वर्तमान) 

amem  

भावार्थक

amarem

Ames

आज्ञार्थ                          

ama-amate

amet 

व.का.धा

amans

amemus

भ.का.धा.                        

amaturus

ametis 

भू.का.धा. भावार्थक           

ama(vi)sse

ament

हेत्वर्थक नाम                     

Amandum

 

तुमंत

amatum amatu

कर्मणीच्या प्रत्ययातील r हा अंश वैशिष्ट्यपूर्ण आहे :amo ‘मी प्रेम करतो’-amor ‘माझ्यावर प्रेम केले जाते’.

विकारशून्य शब्द : क्रियाविशेषण : काही क्रियाविशेषणे विशेषणाच्या लिंगवाचक प्रत्ययाच्या जागी e या प्रत्यय लावून होतात : firmus ‘दृढ’- firme ‘दृढपणे’, तर काही ter लावून होतात prudens ‘शहाणा’- prudenter ‘शहाणपणाने’. काही नपुसकलिंगी एकवचनी विशेषणेही क्रियाविशेषणे म्हणून वापरली जातात : primum ‘पहिले’- ‘आधी’.

स्थलवाचक (ubi ‘कुठे’, in ‘आत’ इ.) नकारवाचक (non‘न’, neque ‘आणि….नाही’ इ.), प्रश्नार्थक  ne (‘न?’, nonne ‘नाही न?’).

संबंधशब्द : हे मराठीतील शब्दयोगी अव्ययाप्रमाणे असतात, पण नामापूर्वी येात : ad ‘ला’,- ‘कडे’, apud  ‘जवळ’, post ‘मागे’, cirea ‘भोवती’ इ. संबंधशब्द ठराविक विभक्तीतील नामापूर्वी येतात : coram ‘समक्ष’, coram amico (पं) ‘मित्रासमक्ष’, in ‘त’, in urbem (द्वि.) ‘शहरात’ इत्यादी.

उभयान्वयी अव्यय : et, atque, ac que ‘आणि’ sed, verum ‘परंतु’, aut, vel, ve ‘किंवा’, nam, enim ‘कारण’, ergo, igitur ‘म्हणून, त्याअर्थी’.

उद्‌गारवाचक : heu, eheu ‘अररे’, hues ‘अरे’, ‘अहो’, इत्यादी.

काही वाक्ये-’ Rosa est Pulchra ‘गुलाब सुंदर आहे’ Pater et mater laeti sunt ‘आईबाप आनंदी आहेत’. Caesar citra Rubiconem paulisper subsit ‘सीझर काही काळ रूबिकोनच्या पलिकडे थांबला’. German trans Rhenum incolunt ‘जर्मन लोक ऱ्हाईनपलिकडे राहतात’. Inter urbem et fluvium turris erat ‘शहर आणि नदी यांच्या दरम्यान मनोरा होता’. Filii gratia id fecit ‘मुलाच्या प्रेमासाठी ते (त्याने) केले.’ Ambulat in horto ‘तो बागेत फिरतो’.

लॅटिनचे महत्त्व : ग्रीक व लॅटिन या यूरोपातल्या प्राचीन समृद्ध भाषा आहेत. अनेक शास्त्रांवरील महत्त्वाचे ग्रंथ, ललित साहित्यकृती यांचे त्या भांडार आहेत. पण ज्याप्रमाणे या भाषांवर प्रभुत्व असणाऱ्या पाश्चात्त्य विद्वानांनी संस्कृत, इराणी इ. पूर्वेकडील भाषांचा सूक्ष्म अभ्यास करून अत्यंत मौल्यवान आणि मौलिक संशोधन केले, त्याप्रमाणे ते पौर्वात्यांनी केले नाही.

लॅटिन प्रयोग राजकारण, तत्त्वज्ञान, भौतिक शास्त्रे, गणित इत्यादींवरील साहित्यात अपरिहार्य ठरलेले आहेत : sine die, ipso facto, quod erat deminstrandum, de jure इत्यादी. तसेच अनेक संक्षेपचिन्हेही आपल्या परिचयाची आहेत : N.B., etc., ibid, i.e., e.g. इत्यादी. ती भाषांतररूपाने आपल्या साहित्यात वावरत आहेत.

या दोन भाषांनी यूरोपीय भाषांना ज्या पारिभाषिक संज्ञा, नवे शब्द पुरवले आहेत, साहित्यिकांना जी प्रेरणा दिली आहे, विषय पुरवले आहेत, त्यांची मोजदाद करणेही कठीण.

अशा भाषांचा डोळस अभ्यास आपल्याकडे झाला, तर भाषाशास्त्र, साहित्यशास्त्र, तत्त्वज्ञान इ. क्षेत्रांत तो उपकारक ठरेल यात शंका नाही.

कालेलकर, ना. गो.