गणितीय संकेतने, चिन्हे व संज्ञा : विशिष्ट चिन्हे, संकेतने आणि संज्ञा वापरल्याने गणिती कृत्ये संक्षिप्त स्वरूपात मांडता येऊन अधिक सुटसुटीत आणि सुगम होतात, इतकेच नव्हे तर प्रत्यक्ष ती कृत्ये कशी घडवून आणावयाची यासंबंधीच्या विचारासही चालना मिळते. ही संकेतने, चिन्हे व संज्ञा काही वेळा जी कृत्ये घडवून आणावयाची त्यासाठी, तर काही वेळा एखाद्या शब्दसमूहाचा वारंवार होणारा वापर टाळण्यासाठी उपयोगी पडतात. गणितात सध्या वापरात असलेली संकेतने, चिन्हे व संज्ञा यांचा संच अनेक श्रेष्ठ गणितज्ञांच्या संशोधनात, देशोदेशीच्या भाषांत, दीर्घकाळ वापरण्यातून उत्पन्न झालेला आहे. काही आधुनिक गणितशाखांचे अपवाद वगळल्यास सध्या या चिन्हांचा वापर आंतरराष्ट्रीय आहे.

सुरुवातीच्या काळात वापरलेली चिन्हे ही बहुधा त्या त्या कृत्यांच्या संदर्भात वापरल्या जाणाऱ्या शब्दांची आद्याक्षरे किंवा लघुरूपे असत. व्ह्येता (१५४०–१६०३), ऑट्रेड (१५७५–१६००), देकार्त (१५९६–१६५०) आणि लायप्‍निट्स (१६४६–१७१६) यांनी या चिन्हांच्या वापराचा विशेष काळजीपूर्वक अभ्यास केला. सतराव्या शतकाच्या अखेरीस, अर्थाची सुस्पष्टता आणि छपाईची सुलभता या गोष्टीकडे विशेष लक्ष देऊन तोपर्यंत वापरात असलेल्या चिन्हांच्या उपयोगास लायप्‍निट्स यांनी निश्चिती आणली. विचार आणि कल्पना यांचा अभ्याससुद्धा चिन्हांच्या द्वारे करावा, असे त्यांचे स्वप्‍न होते. परंतु एकोणिसाव्या शतकात जॉर्ज बूल (१८१५–६४) यांच्या ॲन इन्व्हेस्टिगेशन ऑफ द लॉज थॉट ऑन वुइच आर फाउंडेड द मॅथेमॅटिकल थिअरीज ऑफ लॉजिक अँड प्रॉबॅबिलिटीज  या पुस्तकाचे प्रकाशन होईतो या स्वप्‍नास मूर्त स्वरूप आले नाही. विसाव्या शतकाच्या पूर्वार्धात गणित व गणिती कृत्ये यांच्या जडणघडणीच्या मूलभूत मीमांसेत आणि ⇨चिन्हांकित तर्कशास्त्रात या विषयाला महत्त्व प्राप्त झाले. जुन्या काळी बीजगणित व कलनशास्त्र यांची वाढ होत असताना संकेतने व चिन्हे यांच्यांत जी विविधता होती त्याच प्रकारची विविधता हल्लीच्या काळी आधुनिक गणितशाखांची झपाट्याने वाढ होत असताना आढळते (गणितीय चिन्हांचा इतिहास ‘गणित’ या नोंदीत दिलेला आहे). विविध गणितशाखांतील चिन्हे व ती कशी वाचावीत याची माहिती खाली दिली आहे.

अंकगणित व सामान्य व्यवहारातील चिन्हे :  

+             अधिक चिन्ह. बेरीज, धन दिशानिदर्शक. 

              क + ख : अधिक

–             उणे चिन्ह. वजाबाकी, ऋण दिशानिदर्शक. 

=            समान, बरोबर. 

             = बरोबर समान

≠            असमानता निदर्शक, वेगळेपणा. 

             क ≠ ख : क वेगळा ख क बरोबर ख नाही  किंवा 

             क असमान ख. 

±            अधिक किंवा उणे. 

∓            उणे किंवा अधिक. 

×            गुणाकार. 

             क × ख : गुणिले ख. हेच क·ख किंवा क ख असेही काही वेळा लिहितात. 

÷            भागाकार.  

             क ÷ ख : क भागिले ख. हेच काही वेळा क / ख किंवा 

             क / ख असेही लिहितात. 

:            गुणोत्तर. 

            क : ख : क आणि ख चे गुणोत्तर क स ख गुणोत्तर 

                 क, ख.

&gt              गुरुतर, पेक्षा मोठे याअर्थी.

            क &gt ख   क गुरुतर ख क हा ख पेक्षा मोठा याअर्थी. 

             गुरुतर अथवा समान. 

            क ≥ ख : क गुरुतर अथवा समान ख. 

&lt              लघुतर, पेक्षा लहान याअर्थी. 

            क &lt ख : क लघुतर ख. 

            लघुतर अथवा समान. 

            क ≤ ख : क लघुतर अथवा समान ख. 

≯              गुरुतर नाही. 

≮             लघुतर नाही. 

: :              प्रमाणात बरोबर, समान गुणोत्तर.                क : ख : : ३ : २ :- गुणोत्तर क, ख समान गुणोत्तर ३, २ क स ख तसे ३ स २.

}

आसन्न समान, अंदाजे बरोबर.

क ≏ ख :- क आसन्न समान ख अंदाजे क बरोबर ख.

≡                 नित्यसमान.

                   क ≡ ख  :- क नित्यसमान ख.

≢                नित्यसमान नाही.

∝               प्रमाणात बदलते.

                  क ∝ ख :- क, ख च्या प्रमाणात बदलतो.

∞           अनंत. 

|क्ष|          क्ष चे केवल मूल्य क्ष चे चिन्ह निरपेक्ष मूल्य. 

                         |क्ष| :  केवल क्ष. 

लॉग क्ष     क्ष चा, अ आधारांकाचा लॉगरिथम लॉग क्ष, आधार  अ. 

लॉग e क्ष     क्ष चा, e आधारांकाचा लॉगरिथम क्ष चा स्वाभाविक लॉगरिथम. 

            लॉग e क्ष  : क्ष, आधार e. 

            नुसता लॉग क्ष लिहिल्यास, आधारांक e आहे असे समजण्याची प्रथा आहे. 


लॉग १० क्ष   क्ष चा, १० आधारांकाचा लॉगरिथम क्ष चा सामान्य लॉगरिथम. 

           लॉग १० क्ष : लॉग क्ष, आधार १० किंवा दशमाधार लॉग क्ष. 

म.सा.वि.     महत्तम साधारण विभाजक. 

ल.सा.वि.     लघुतम साधारण विभाज्य. 

i,  –          i = – १ असत् संख्या. 

           २i म्हणजे दोन i

           क + i ख : क अधिक i ख. 

{ }         संच चिन्ह. 

                      { क्ष | क्ष + २ क्ष – ३ &gt ०}, 

           म्हणजे ज्या क्ष च्या मूल्यासाठी क्ष+ २ क्ष – ३ &gt ०  

           असेल अशा सर्व मूल्यांचा संच. 

( )         खुले अंतराल, अनावृत अंतराल. 

                     (क, ख) : खुले अंतराल क, ख अनावृत अंतराल क, ख. 

[ ]                  बंद अंतराल, आवृत अंतराल. 

                     [क, ख] : बंद अंतराल क, ख आवृत्त अंतराल क, ख. 

[ )         अर्धबंद अंतराल, अर्थ- आवृत अंतराल.

( ]         अर्धखुले अंतराल, अर्ध-अनावृत अंतराल.

फ(क्ष)       फलन. फ (क्ष) : क्ष चे फलन फ. 

[क्ष ]              क्ष या संख्येतील महत्तम पूर्णाक. 

        अस्तित्व निदर्शक. अ क्ष : क्ष अस्तित्वात आहे. 

∋         अशा प्रकारे की. 

        अशा प्रत्येकासाठी, सर्वांसाठी.  

          स : अशा प्रत्येक स साठी अशा सर्व स साठी. 

∈        चा घटक असणे. 

          क्ष ∈ (क, ख ) : क्ष घटक खुले अंतराल क, ख. 

∉         चा घटक नसणे.

          क्ष ∉  (क, ख) :क्ष घटक नाही खुले अंतराल क, ख चा.

⇒        जर … तर …

          क ⇒ ख :- जर क तर ख.

⇔        जर … तरच …

          क ⇔ ख : जर क तरच ख जर क तर ख आणि जर

          ख तर क.

∴        म्हणून.

अंकगणित व सामान्य व्यवहारातील चिन्हे :

∵               कारण.

      वर्गमूळ घातमूळ चिन्ह.

      प वे मूळ.

क्ष       क्ष चा प कोटीचा घात.

( )       साधा कंस. ( क्ष + य ) :- साध्या कंसात क्ष + य.

[ ]       जात्य कंस. [ क्ष +य ] :- जात्य कंसात क्ष + य.

{ }       महिरपी कंस. { क्ष + य } :- महिरपी कंसात क्ष + य.

∑        अनुक्रमित पदांची बेरीज.

         प

         ∑ क्ष = क्ष + क्ष + … + क्ष .

         र = १

         वाचा : क्रम संयुती, र = १ ते प, क्ष.

अनंत श्रेणी अ, अ, …

        

∏        क्रमगुणन.

        

          वाचा : क्रमगुणन, र = १ ते प, क्ष .

संच सिद्धांत :  

⊂         अंतर्भूत असणे उपसंच असणे.

          क ⊂ स : क अंतर्भूत स क, स चा उपसंच.

⊃         आधान मध्ये अंतर्भूत असणे.

          स ⊃ क : स आधान क स मध्ये क अंतर्भूत.

∩        छेदन. क ∩ ख किंवा क. ख : क छेदन ख.

∪        संयोग युती. क ∪ ख किंवा क + ख : क युती ख.

वि        विश्व संच.

क चा पूरक संच.

ख चा क मधील पूरक संच.

श,      रिक्त किंवा शून्य संच.

स        सत् संख्यांचा संच.

बीजगणित :  

क्रमगुणित प = १ . २ .३ . ४ … प.

 प क्रमचय र.

 

 प समचय र.

टठ       ट व्या पंक्तीत आणि ठ च्या स्तंभात

          असणारा घटक.

          वाचा :- अटठ निर्धारक किंवा आव्यूह यांचा.

।अटठ।     निर्धारक :- ज्याचा अटठ हा घटक

                   वरीलप्रमाणे आहे.

[अटठ]     आव्यूह : ज्याचा अटठ हा घटक

                वरीलप्रमाणे आहे.

         अनुक्रमे क्ष, य, झ या जात्य अक्ष

                त्रयीवरील एकक सदिश.

         अदिश गुणाकार. वाचा : क बिंदू ख.

           सदिश गुणाकार. वाचा : क फुली ख.


-१ अ       चा प्रतिलोम आव्यूह.

ए            तत्सम आव्यूह.

          संचातील ( गट, वलय किंवा क्षेत्र ) गणित कृत्य.

अ’           परिवर्त आव्यूह. वाचा :- परिवर्त अ.

अ*          संलग्न आव्यूह. वाचा :- संलग्न अ.

J            याकोबियन.

                          

भूमिती :

∠            कोन. ∠ अ :- कोन अ.

L                        काटकोन. L ब :- काटकोन ब.

⊥            लंब. कख ⊥ यर :- कख ला लंब यर.

||             समांतर. कख || यर :- कख ला समांतर यर.

Δ             त्रिकोण.O            वर्तुळ. O अ, त्र :- मध्य अ, त्रिज्या त्र असे वर्तुळ.

                    समांतरभुज चौकोन.≡             एकरूप. Δ कखग ≡ Δ यरल :- त्रिकोण कखग              एकरूप त्रिकोण यरल.

⫴                         सरूप. Δ कखग ⫴ Δ यरल :- त्रिकोण कखग

              सरूप  त्रिकोण यरल.

          सदिश रेषाखंड कख.

           वर्तुळचाप कख.

π                         परीघ : व्यास गुणोत्तर.

             थ अंश.

क’             क मिनिटे.

ख”             ख सेकंद.

यू             प-मितीय यूक्लिडीय अवकाश.

आ             आदिबिंदू.

त्र              वक्रता त्रिज्या.

वि              विकेंद्रता.

त्रिकोणमिती :

ज्या थ            थ चे ज्या गुणोत्तर.

कोज्या थ          थ चे कोज्या गुणोत्तर.

स्प थ             थ चे स्पर्शक गुणोत्तर.

कोस्प थ           थ चे कोस्पर्शक गुणोत्तर.

छे थ              थ चे छेदक गुणोत्तर.

कोच्छे थ           थ चे कोच्छेदक गुणोत्तर.

         व्युत्क्रम ज्या.

        व्युत्क्रम कोज्या.

अपाज्या            अपास्तीय ज्या.

अपाकोज्या          अपास्तीय कोज्या.

अपाज्या -१          व्युत्क्रम अपास्तीय ज्या.

अपाकोज्या -१        व्युत्क्रम अपास्तीय कोज्या.

कलनशास्त्र :

Δ , δ              अल्पवाढ दाखविणारे चिन्ह अल्प वृद्धीदर्शक चिन्ह.

                  Δ क्ष, δ क्ष :- अल्प क्ष.

→                                उपगामी सीमावर्ती.

                  क → ख :- क उपगामी ख.

                  क → ¥ :- क उपगामी अनंत किंवा

                  अनंतोपगामी क.

O+                धनदिक् शून्योपगामी.

O                ऋणदिक् शून्योपगामी.

सीमा अ           प अनंतोपगामी असता, अची सीमा.

प → ∞            वाचा :- अनंतोपगामी प, सीमा अ.


d                अवकलदर्शक चिन्ह.

              क्ष चा अवकल. वाचा :- अवकल क्ष, स्वल्प क्ष.

         य’ चा, क्ष सापेक्ष अवकलांक (dय/dक्ष).

                  वाचा :- स्वल्प य ला स्वल्प क्ष.

क्षं                क्ष चा, ट सापेक्ष अवकलज (ज=काल).

       फ (क्ष, य)/dक्ष  फ (क्ष, य) चा क्ष सापेक्ष, आंशिक अवकलांक.

                 वाचा :- लव ला लव क्ष.

 फ-१ (क्ष)          फ (क्ष) चे व्यस्त फलन.

                 वाचा :- व्यस्त फ (क्ष).

    अनिश्चित समाकल, क्ष सापेक्ष.

                 वाचा :- समाकल फ (क्ष) स्वल्प क्ष.

    निश्चित समाकल, क ते ख समाकल फ (क्ष) स्वल्प क्ष.

                      व आवृत वक्रानुसारी समाकल.

          दुहेरी समाकल.

                 तिहेरी समाकल.

                अवकल कारक.

          प क्रमी अवकल कारक.

J                बेसेल प – क्रमी फलन.

                              ऑयलर स्थिरांक.

            प चे गॅमा फलन. गॅमा प.

B (म, न)         बीटा (म, न) फलन.

इनामदार, चिं. शं.