पालिभाषा : पाली ही जातकांची, तसेच धम्मपद दीघनिकाय इ. बौद्ध धर्मग्रंथांची भाषा आहे. पाली याचा मूळ अर्थ ओळ किंवा पंक्ती असा आहे. एखाद्या धर्मग्रंथातील वचन किंवा उतारा, असाही अर्थ नंतर त्याला लक्षणेने आला आहे.
स्वरमध्यस्थ ड व ढ यांचे ळ व ळह होतात.
बुद्ध |
भिक्खु |
|||
एकवचन |
अनेकवचन |
एकवचन |
अनेकवचन |
|
प्र. |
बुद्धो |
बुद्धा |
भिक्खु |
भिक्खू, भिक्खवो |
द्वि. |
बुद्धं |
बुद्धे |
भिक्खुं |
भिक्खू, भिक्खवो |
तृ. |
बुद्धेन, बुद्धा |
बुद्धेहि |
भिक्खुना |
भिक्खूमि, भिक्खूहि |
च. |
बुद्धस्स |
बुद्धानं |
भिक्खुस्स, भिक्खुनो |
भिक्खूनं |
पं. |
बुद्धा, बुद्धस्मा, बुद्धम्हा |
बुद्धेहि |
भिक्खुना, भिक्खुस्मा, भिक्खुम्हा |
भिक्खूभि, भिक्खूहि |
ष. |
बुद्धस्स |
बुद्धानं |
भिक्खुस्स, भिक्खुनो |
भिक्खूनं |
स. |
बुद्धे, बुद्धस्मिं, बुद्धम्हि |
बुद्धेसु |
भिक्खुस्मिं, भिक्खुम्हि |
भिक्खूसु, भिक्खूसु |
सं. |
बुद्ध |
बुद्धा |
भिक्खु |
भिक्खू, भिक्खवो |
अम्ह
एकवचन |
अनेकवचन |
|
प्र. |
अह |
मयं, अम्हे, नो |
द्वि. |
मं, ममं |
अम्हे, अम्हाकं, नो |
तृ. |
मया, मे |
अम्हेभि, अम्हेहि, नो |
च. |
मय्हं, मम, अम्हं, ममं, मे |
अम्हाकं, अस्माकं, नो |
पं. |
मयो, मे |
अम्हेभि, अम्हेहि, नो |
ष. |
मय्हं, मम, अम्हं, ममं, मे |
अम्हाकं, अस्माकं, नो |
स. |
मयि |
अम्हेसु |
तुम्ह
एकवचन |
अनेकवचन |
|
प्र. |
त्वं, तुवं |
तुम्हे, वो |
द्वि. |
त्वं, तुवं, तं, तवं |
तुम्हे, वो |
तृ. |
तया, त्वया, ते |
तुम्हेभि, तुम्हेहि, वो |
च. |
तव, तुय्हं, तुम्हं, ते |
तुम्हाकं, वो |
पं. |
तया, त्वया, ते |
तुम्हेभि, तुम्हेहि, वो |
ष. |
तव, तुय्हं, तुम्हं, ते |
तुम्हाकं, वो |
स. |
तयि, त्वयि |
तुम्हेसु |
त
पुल्लिंग |
स्त्रीलिंग |
नपुंसकलिंग |
|
प्र. |
सो |
सा |
तं, नं |
द्वि. |
तं, नं |
तं, नं |
तं, नं |
तृ. |
तेन, नेन |
ताय, नाय |
तेन, नेन |
च. |
तस्स, नस्स |
ताय, नाय, तिस्सा, तिस्साय, तस्सा, तस्साय |
तस्स, नस्स |
पं. |
तस्मा, तम्हा, नस्मा, नम्हा |
ताय, नाय |
तस्मा, तम्हा, नस्मा, नम्हा |
ष. |
तस्स, नस्स |
ताय, नाय, तिस्सा, तिस्साय, तस्सा, तस्साय |
तस्स, नस्स |
स. |
तस्मिं, तम्हि, नस्मिं, नम्हि |
ताय, नायं, तिस्सं, तस्सं, नस्सं |
तस्मिं, तम्हि, तस्मिं, नम्हि |
अनेकवचन
प्र. |
ते, ने |
ता, तायो, ना, नायो |
ते, ने, तानि, नानि |
द्वि. |
ते, ने |
ता, तायो, ना, नायो |
ते, ने, तानि, नानि |
तृ. |
तेभि, तेहि, नेभि, नेहि |
ताभि, ताहि, नाभि, नाहि |
तेभि, तेहि, नेभि, नेहि |
च. |
तेसं, तेसानं, नेसं, नेसानं |
तासं, तासानं, नासं, नासानं |
तेसं, तेसानं, नेसं, नेसानं |
पं. |
तेभि, तेहि, नेभि, नेहि |
ताभि, ताहि, नाभि, नाहि |
तेभि, तेहि, नेभि, नेहि |
ष. |
तेसं, तेसानं, नेसं, नेसानं |
तासं, तासानं, नासं, नासानं |
तेसं, तेसानं, नेसं, नेसानं |
स. |
तेसु, नेसु |
तासु, नासु |
तेसु, नेसु |
विशेषण : विशेषण ज्या नामाशी संबंधित असते त्या नामाचे लिंग, वचन व विभक्ती ते घेते. अकारान्त विशेषणांचे स्त्रीलिंग अ ऐवजी आ ठेवून होते. कधी कधी ई ही अ ची जागा घेते. विशेषणाचे मूळ रूप नामापूर्वी जोडून समासही बनवता येतो.
संख्यावाचक शब्दांचा वापर बराच गुंतागुंतीचा आहे. १ ते १८ या संख्या विशेषणाप्रमाणे चालतात. आकारान्त दर्शक शब्द (उदा., वीसा ‘वीस’) स्त्रीलिंगी नामाप्रमाणे चालतात. पण एकंदरीत ही गुंतागुंत थोडक्या सामान्य नियमांच्या पलीकडची आहे.
वर्तमान
अस |
हु |
|||
एकवचन |
अनेकवचन |
एकवचन |
अनेकवचन |
|
प्र. |
अस्मि, अम्हि |
अस्म, अम्ह |
होमि |
होम |
द्वि. |
असि |
अत्थ |
होसि |
होथ |
तृ. |
अत्थि |
सन्ति |
होति |
होन्ति |
भर
एकवचन |
अनेकवचन |
|
प्र. |
भरामिं |
भराम |
द्वि. |
भरसि |
भरथ |
तृ. |
भरति |
भरन्ति |
भविष्य
अस धातूला भविष्यकाळाची रूपावली नाही.
हु
एकवचन |
अनेकवचन |
|
प्र. |
हेस्सामि, हेस्सं, हेहिभि, होहिमि |
हेस्साम, हेहिम, होहिम |
द्वि. |
हेस्ससि, हेहिसि, होहिसि |
हेस्सथ, हेहिथ, होहिथ |
तृ. |
हेस्सति, हेहिति, होहिति |
हेस्सन्ति, हेहिन्ति, होहिन्ति |
भर
एकवचन |
अनेकवचन |
|
प्र. |
भरिस्सामि, भरिस्सं |
भरिस्साम |
द्वि. |
भरिस्ससि |
भरिस्सथ |
तृ. |
भरिस्सति |
भरिस्सन्ति |
संकतार्थ
अस धातूला संकेतार्थाची रूपावली नाही.
हु |
भर |
|||
एकवचन |
अनेकवचन |
एकवचन |
अनेकवचन |
|
प्र. |
अहुविस्सं |
अहुविस्सम्ह |
(अ) भरिस्सं |
(अ) भरिस्सम्ह |
द्वि. |
अहुविस्से, अहुविस्ससे |
अहुविस्सथ |
(अ) भरिस्स |
(अ) भरिस्सथ |
तृ. |
अहुविस्स |
अहुविस्संसु |
(अ) भरिस्स |
(अ) भरिस्संसु |
भूतकाळ
अस |
हु |
|||
एकवचन |
अनेकवचन |
एकवचन |
अनेकवचन |
|
प्र. |
आसिं |
आसिम्ह |
अहोसिं |
अहोसिम्ह |
द्वि. |
आसि |
आसित्थ |
अहोसि |
अहोसित्थ |
तृ. |
आसि |
आसिंसु, आसुं |
अहोसि, अहुवा, अहु |
अहेसुं |
भर
एकवचन |
अनेकवचन |
|
प्र. |
अभरिं |
अभरिम्ह |
द्वि. |
अभरि |
अभरित्थ |
तृ. |
अभरि |
अभरिंसु |
आज्ञार्थाचे प्रत्यय प्र. पु. मी-म द्वि. पु. हि-थ आणि तृ.पु. तु-अन्तु हे आहेत.
याशिवाय वर्तमान, भूत, भविष्य,विध्यर्थ, इ. दर्शक धातुसाधिते आहेत. वर्तमान धातुसाधिताचे अन्त व मान हे प्रत्यय आहेत. भूतकाळाचा प्रत्यय त किंवा इत आहे. पण बरीचशी धातुसाधिते संस्कृतमधून सरळ आल्यामुळे या नियमाला अपवाद आहेत. भविष्यका ळाचे धातुसाधित धातूला इस्स हा प्रत्यय लावून पुढे अन्त हा प्रत्यय जोडून होते. विघ्यर्थवाचक धातुसाधित धातूला तब्ब, इतब्ब, अनीय किंवा य हे प्रत्यय लावल्याने मिळते.
हेत्वर्थक अव्यय धातूला तुं प्रत्यय लावून आणि भूतकाळवाचक अव्यय त्वा व कधीकधी य हा प्रत्यय लावून सिद्ध होते. त्वाच्या अर्थी कवितेत त्वान व तून ही रूपेही आढळतात.
पालीत समासाची लांबी प्रमाणशीर असते. उगीच शब्दाला शब्द जोडून लांबलचक साखळी बनवण्याची पंडिती वृत्ती इथे नाही. म्हणूनच दोनांपेक्षा अधिक शब्दांचा समासही खटकत नाही. एकंदरीतच लेखनाचा डौल टाळून संभाषणात्मक किंवा निवेदनात्मक राहण्याकडे भाषेची प्रवृत्ती आहे : मरणभयतज्जितो भिगो दारुदकतेलतन्दुलादीनि गंगातीरवासी व वत्थूनि.
ओ किंवा ए नंतर येणारा अ लोप पावतो : देवो+ अम्हि= देवो Sम्हि. शब्दानंतर येणाऱ्या इतिमधील आद्य इ नाहीशी होऊन त्याआधीचा स्वर दीर्घ होतो : गच्छाम+इति+गच्छामा S ति साधु+इति= साधूति.
अथ नं सो सकुणो गोचरपसुतो दिस्वा साखाय निलीनो ‘किन्ते सम्म दुक्खतीति’ पुच्छि. सो तमत्थं. आचिखि ‘अहन्ते सम्म एतं अट्ठि अपनेय्यं, भयेन ते मुखं पविसितुं न विसहामि, खादेय्यासि पिमन्ति’. ‘मा भायि सम्म, नाहन्तं खादामि, जीवितं मे देहीति’.
तेव्हा त्याला खाण्यासाठी (भुकेने) व्याकुळ झालेला पाहून फांदीवर बसलेल्या पक्ष्याने विचारले, ‘मित्रा, तुला काय दुःख होतं आहे?’ त्याने ती परिस्थिती सांगितली. ‘मित्रा, मी तुझं ते हाड काढलं असतं, (पण) भीतीमुळे तुझ्या तोंडात शिरायला मी धजत नाही. तू मला खाशीलसुद्धा म्हणून’. ‘भिऊ नकोस मित्रा, मी तुला खात नाही. मला प्राणदान दे’. जवसकुणजातके.
“